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मई, 2009 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

हमें आगे बढ़ना होगा , बढ़ना होगा आगे.......

हमें आगे बढ़ना होगा... आज भले ही हम इक्कसवीं शताब्दी में जी रहे हों मगर हमारी ज़मीनी हकीक़त कुछ और ही है । आज भी इस देश की इक्कीस प्रतीशत जनसंख्या गरीबी रेखा के नीचे जी रही है । जनसंख्या का बहुत बड़ा भाग मध्य वर्ग इसी संतोष में जी रहा है की आज नही तो कल उसका सपना जरुर पूरा होगा । हाँ, यह बात जरुर है की आर्थिक उदारीकरण ने इनके सपनो को कुछ हद तक पूरा भी किया है । मगर मंजिल अभी बहुत दूर है । बिहार की बाढ़ में लाखों बह गए । कौन है जिम्मेदार ? आतंकवाद के भेंट हजारों चढ़ गए । कौन है जिम्मेदार ? आज़ादी के साठ साल पूरे हो चुके हैं । नेता, नौकरशाह अमीर हो गए , स्विस बैंक में देश का अरबों रुपयें जमा है । परन्तु देश क़र्ज़ में डूबा है, हम तीसरी दुनिया के लोग कहलाते हैं । कौन है जिम्मेदार ? कहीं हम तो नही ? ज़रा सोचिए! इसलिए मैं कहता हूँ........ हमें आगे बढ़ना होगा , बढ़ना होगा आगे पग-पग पर हैं काटें उनको फूल बनाना होगा हमें आगे बढ़ना होगा , बढ़ना होगा आगे । चाहे सूनामी आए या आए भूकंप कहीं पर लड़ना होगा इससे हमको जितना होगा इसको हमें आगे बढ़

भारत की जनता.....

भारत की जनता बहुत पहले एक कविता भारतीय जनता की स्थितियों को लेकर लिखा था.... एक ऐसी जनता जो दुनिया की सबसे बड़ी लोकतंत्र में रहती है, जिसे अपना सरकार चुनने की छूट है, जो अपने देश के भाग्यविधाताओं के किस्मत का फैसला अपना मत देकर करती है, बड़ी ही गरीबी, लाचारी, और तंगहाली में जिंदा रहती है । इस देश की बड़ी संख्या आज भी अभावों में जी रही है । उसे कोई फर्क नही पड़ता की प्रधानमंत्री अमेरिका के साथ क्या डील करते हैं ? उसे मतलब है की किसी तरह उसे पेट भर भोजन मिल जाय। देश में सूचना क्रांति आए या फिर यह देश परमाणु शक्ति से संपन्न हो जाय, उसे कोई फर्क नही पड़ता । मगर धीरे- धीरे ही सही वह जनता अब जागने लगी है । तभी तो इस बार बाहूबलियों और बेईमानों को नानी याद आ गई और संसद से महरुम होना पड़ा । यह है भारत की जनता भूखी नंगी है यह बेबस - लाचार है खोई -खोई है यह सोई - सोई सी है । क्या कहूँ मै तुमसे , कि कैसी है यह ? ख़ुद पर रोती है यह फिर भी जीती है यह । ताकत इनके है पास फिर भी है आभाव इनकी है यह कहानी गरीबी निशानी । बढ़ती संख्या की बोझ अधूरी शिक्षा की सोच लिए चलते हैं यह फिर भी आगे