हमें आगे बढ़ना होगा... आज भले ही हम इक्कसवीं शताब्दी में जी रहे हों मगर हमारी ज़मीनी हकीक़त कुछ और ही है । आज भी इस देश की इक्कीस प्रतीशत जनसंख्या गरीबी रेखा के नीचे जी रही है । जनसंख्या का बहुत बड़ा भाग मध्य वर्ग इसी संतोष में जी रहा है की आज नही तो कल उसका सपना जरुर पूरा होगा । हाँ, यह बात जरुर है की आर्थिक उदारीकरण ने इनके सपनो को कुछ हद तक पूरा भी किया है । मगर मंजिल अभी बहुत दूर है । बिहार की बाढ़ में लाखों बह गए । कौन है जिम्मेदार ? आतंकवाद के भेंट हजारों चढ़ गए । कौन है जिम्मेदार ? आज़ादी के साठ साल पूरे हो चुके हैं । नेता, नौकरशाह अमीर हो गए , स्विस बैंक में देश का अरबों रुपयें जमा है । परन्तु देश क़र्ज़ में डूबा है, हम तीसरी दुनिया के लोग कहलाते हैं । कौन है जिम्मेदार ? कहीं हम तो नही ? ज़रा सोचिए! इसलिए मैं कहता हूँ........ हमें आगे बढ़ना होगा , बढ़ना होगा आगे पग-पग पर हैं काटें उनको फूल बनाना होगा हमें आगे बढ़ना होगा , बढ़ना होगा आगे । चाहे सूनामी आए या आए भूकंप कहीं पर लड़ना होगा इससे हमको जितना होगा इसको हमें आगे बढ़