भारत की जनता
बहुत पहले एक कविता भारतीय जनता की स्थितियों को लेकर लिखा था.... एक ऐसी जनता जो दुनिया की सबसे बड़ी लोकतंत्र में रहती है, जिसे अपना सरकार चुनने की छूट है, जो अपने देश के भाग्यविधाताओं के किस्मत का फैसला अपना मत देकर करती है, बड़ी ही गरीबी, लाचारी, और तंगहाली में जिंदा रहती है । इस देश की बड़ी संख्या आज भी अभावों में जी रही है । उसे कोई फर्क नही पड़ता की प्रधानमंत्री अमेरिका के साथ क्या डील करते हैं ? उसे मतलब है की किसी तरह उसे पेट भर भोजन मिल जाय। देश में सूचना क्रांति आए या फिर यह देश परमाणु शक्ति से संपन्न हो जाय, उसे कोई फर्क नही पड़ता ।
मगर धीरे- धीरे ही सही वह जनता अब जागने लगी है । तभी तो इस बार बाहूबलियों और बेईमानों को नानी याद आ गई और संसद से महरुम होना पड़ा ।
यह है भारत की जनता
भूखी नंगी है यह
बेबस - लाचार है
खोई -खोई है यह
सोई - सोई सी है ।
क्या कहूँ मै तुमसे , कि कैसी है यह ?
ख़ुद पर रोती है यह फिर भी जीती है यह ।
ताकत इनके है पास फिर भी है आभाव
इनकी है यह कहानी गरीबी निशानी ।
बढ़ती संख्या की बोझ
अधूरी शिक्षा की सोच
लिए चलते हैं यह
फिर भी आगे बढ़ते हैं यह
है यह भारत की जनता
कुछ कर गुजरने की क्षमता
भाग्य बदलने की मंशा .....
यह है भारत की जनता
यह है भारत की जनता।
जय हिंद ।
भारत की जनता, कविता, ब्लॉग, blog, Blogger, भारत, इंडिया, जनता, नीरज, कुछ देर , बेबस
टिप्पणियाँ
कुछ कर गुजरने की क्षमता
भाग्य बदलने की मंशा .....
यह है भारत की जनता
यह है भारत की जनता।
जय हिंद ।
बहुत बढियां ..अभिनंदन .., हमारी शुभकामनाएं स्वीकार करें ..मक्
।
हाँ, जनता फिर ठगी गई है। कोई नई बात नहीं है। ऐसा तब से हो रहा है जब कांग्रेस की स्थापना हुई थी।
word verification रखा हो तो हटा दें, हर ब्लॉगर कृतज्ञ होगा।
चिटठा जगत मैं आप का स्वागत है
गार्गी
ईमानदारी से कही गई बात हमेशा अच्छी लगती है। बधाई आपको...
शुभकामनाएं......
धन्यवाद
नीरज शर्मा
http://www.blogforindian.blogspot.com