अब बर्दाश्त नही होता......
दिल्ली, मुंबई, बनारस, जयपुर सब देखा हमने
अपनों को मरते देखा , सपनो को टूटते देखा ....
अख़बारों की काली स्याही को खून से रंगते देखा !
टेलीविजन के रंगीन चित्रों को बेरंग होते देखा !
आख़िर क्यों हम बार- बार शिकार होते हैं आतंकवाद का ?
यह आतंकी कौन है और क्या चाहता है ?
क्यों हमारी ज़िन्दगी में ज़हर घोलता है ?
क्यों वो नापाक इरादे लेकर चलता है और हमें मौत बांटता है ?
कोई तो बताए हमें , हम कब तक यूँ ही मरते रहेंगे.....?
कब तक माँ की गोद सूनी होती रहेगी ?
कब तक बहन की रोती आँखें लाशों के बीच अपने भाई को ढूंढेगी ?
कब तक बच्चे माँ - बाप के दुलार से महरूम होते रहेंगे..... ?
आख़िर कब तक ..............?
यह सवाल मेरे ज़हन में बार - बार उठता है ,
खून खौलता है मेरा जब मासूमो के लहू को बहते देखता हूँ ,
न चाहते हुए भी आंखों को वो मंज़र देखना पड़ता है ,
न चाहते हुए भी कानो को वह चीख - पुकार सुनना पड़ता है ।
आख़िर कब तक ?
आख़िर कब तक ?
दिल्ली, मुंबई, बनारस, जयपुर सब देखा हमने
अपनों को मरते देखा , सपनो को टूटते देखा ....
अख़बारों की काली स्याही को खून से रंगते देखा !
टेलीविजन के रंगीन चित्रों को बेरंग होते देखा !
आख़िर क्यों हम बार- बार शिकार होते हैं आतंकवाद का ?
यह आतंकी कौन है और क्या चाहता है ?
क्यों हमारी ज़िन्दगी में ज़हर घोलता है ?
क्यों वो नापाक इरादे लेकर चलता है और हमें मौत बांटता है ?
कोई तो बताए हमें , हम कब तक यूँ ही मरते रहेंगे.....?
कब तक माँ की गोद सूनी होती रहेगी ?
कब तक बहन की रोती आँखें लाशों के बीच अपने भाई को ढूंढेगी ?
कब तक बच्चे माँ - बाप के दुलार से महरूम होते रहेंगे..... ?
आख़िर कब तक ..............?
यह सवाल मेरे ज़हन में बार - बार उठता है ,
खून खौलता है मेरा जब मासूमो के लहू को बहते देखता हूँ ,
न चाहते हुए भी आंखों को वो मंज़र देखना पड़ता है ,
न चाहते हुए भी कानो को वह चीख - पुकार सुनना पड़ता है ।
आख़िर कब तक ?
आख़िर कब तक ?
टिप्पणियाँ