मैं आपको उम्मीद दिलाता हूँ की " कुछ देर हमारे साथ चलो ...." आपको अपने साथ बहुत दूर ले जायेगी .....। गाँव की गलियों मे, शहरों की चौराहों पर । कुल्हर की चाय और मगधी पान की दुकान पर ....। जिंदगी की अनुभवों को आपसे बाँटने .... और आपकी अनुभवों से कुछ सिखने की मंशा ने ही मुझे यह ब्लॉग बनाने को प्रेरित किया ।
मोचीराम की चंद पंक्तियाँ राँपी से उठी हुई आँखों ने मुझेक्षण-भर टटोला और फिर जैसे पतियाये हुये स्वर में वह हँसते हुये बोला- बाबूजी सच कहूँ-मेरी निगाह में न कोई छोटा है न कोई बड़ा है मेरे लिये, हर आदमी एक जोड़ी जूता है जो मेरे सामने मरम्मत के लिये खड़ा है। और असल बात तो यह है कि वह चाहे जो है जैसा है, जहाँ कहीं है आजकल कोई आदमी जूते की नाप से बाहर नहीं है, फिर भी मुझे ख्याल रहता है कि पेशेवर हाथों और फटे जूतों के बीच कहीं न कहीं एक आदमी है जिस पर टाँके पड़ते हैं, जो जूते से झाँकती हुई अँगुली की चोट छाती पर हथौड़े की तरह सहता है। यहाँ तरह-तरह के जूते आते हैंऔर आदमी की अलग-अलग ‘नवैयत’बतलाते हैं सबकी अपनी-अपनी शक्ल हैअपनी-अपनी शैली है मसलन एक जूता है:जूता क्या है-चकतियों की थैली है इसे एक आदमी पहनता है जिसे चेचक ने चुग लिया है उस पर उम्मीद को तरह देती हुई हँसी है जैसे ‘टेलीफ़ून ‘ के खम्भे परकोई पतंग फँसी है और खड़खड़ा रही है। ‘बाबूजी! इस पर पैसा क्यों फूँकते हो? ’मैं कहना चाहता हूँ मगर मेरी आवाज़ लड़खड़ा रही है मैं महसूस करता हूँ- भीतर सेएक आवाज़ आती ह...
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