सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

मोदी के 'महात्मा' 

मोदी का 'गांधी दर्शन'

 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बातों में महात्मा गांधी हैं.. उनके इरादों में गांधी की झलक दिखती है...देश हो या विदेश पीएम मोदी जहां भी जाते हैं वो गांधी जी का जिक्र जरूर करते हैं.. विदेशी जमीन पर कई ऐसे मौके देखने को मिले हैं.. जब मोदी ने राष्ट्रपिता को याद किया.. उन्हें नमन किया है..  अमेरिका से लेकर ऑस्ट्रेलिया और जर्मनी से मॉरीशल हर जगह मोदी महात्मा गांधी का अनुसरण करते दिकते हैं.. दुनिया को गांधी का संदेश देते हैं..
बीते साल सितंबर महीने में अमेरिका दौरे पर गए पीएम मोदी ने वहां भी महात्मा गांधी को याद किया.. उन्हें श्रद्धांजलि दी..  वाशिंगटन डीसी के महात्मा गांधी मेमोरियल पर जब नरेंद्र मोदी पहुंचे तो लोगों का अभिवादन करते हुए महात्मा गांधी की मूर्ति तक गए.. सबसे पहले अपने जूते उतारे..गांधी की प्रतिमा पर फूल चढा़ए और उन्हें नमन किया... नरेंद्र मोदी का विजन है कि 2019 में जब बापू की एक सौ पचासवीं जयंति मनाई जाए तो पूरा देश साफ सुथरा नजर आए... और उन्होंने इसका जिक्र उन्होंने अमेरिका के मेडिसन स्कवॉयर में भी किया था ...

पीएम मोदी जब ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर थे.. तब उनका 15 साल पुराना एक सपना सच  हो गया..दरअसल मोदी ब्रिसबेन में गांधी जी की एक मूर्ति लगाने का सपना देखा था.. और जब वो ऑस्ट्रेलिया दौरे पर थे तब उनका ये सपना पूरा हो गया..ब्रिसबेन में प्रतिमा का अनावरण करते हुए मोदी ने कहा कि महात्मा गांधी की बातें आज भी अहमियत रखती हैं... उन्होेंने कहा 2 अक्टूबर, 1869 को एक व्यक्ति ने पोरबंदर में जन्म नहीं लिया था, बल्कि एक युग की शुरुआत हुई थी। मैं मानता हूं कि महात्मा गांधी आज भी उतने ही रेलेवेंट हैं जितने कि अपने जीवन काल में थे..
ब्रिसबेन में जहां गांधी जी के प्रतिमा का अनावरण किया गया वहीं स्प्रिंगफील्ड में एक ब्रिज का नाम महात्मा गांधी के नाम पर महात्मा गांधी इंस्पीरेशन ब्रिज रखा गया... 
इस साल जब पीएम मोदी मॉरिशस के दौरे पर गए तब वहां भी उन्होंने गांधी जी के आदर्शों और आजादी की लडाई में उनके योगदान को याद किया.. मोदी ने महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि अर्पित की और उन्हें याद किया.. मॉरिशस के नेशनल डे के मौके पर मोदी मुख्य अतिथि के तौर पर शामिल हुए और वहां की संसद में भी गांधी जी के योगदान का जिक्र किया
साफ है कि मोदी कहीं भी जाएं महात्मा उनके साथ होते हैं.. गांधी जी के जीवन को वो दुनिया के लिए दर्शन बताते हैं.. राष्ट्रपिता महत्मा गांधी के जीवन से मोदी काफी प्रभावित हैं.. मोदी ने देश में सफाई अभियान की शुरूआत भी महात्मा गांधी के जन्मदिन 2 अक्टूबर से किया था.. 2 अक्टूबर को.. प्रधानमंत्री ने ना सिर्फ झाड़ू लगाया.. बल्कि कूड़ा भी उठाया.. ये दोनों तस्वीरें वाल्मीकि नगर की हैं.. प्रधानमंत्री मोदी खुद झाड़ू लगा रहे हैं.. और झाड़ू लगाने के बाद उन्होंने कूड़ा भी उठाया..  मोदी चाहते हैं कि 2019 में जब देश महात्मा गांधी की 150वीं जयंत मनाए.. तब तक पूरा भरत गांधी जी के सपनों के मुताबिक साफ सुथरा बन जाए..


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

अब बर्दाश्त नही होता......

अब बर्दाश्त नही होता...... दिल्ली, मुंबई, बनारस, जयपुर सब देखा हमने अपनों को मरते देखा , सपनो को टूटते देखा .... अख़बारों की काली स्याही को खून से रंगते देखा ! टेलीविजन के रंगीन चित्रों को बेरंग होते देखा ! आख़िर क्यों हम बार- बार शिकार होते हैं आतंकवाद का ? यह आतंकी कौन है और क्या चाहता है ? क्यों हमारी ज़िन्दगी में ज़हर घोलता है ? क्यों वो नापाक इरादे लेकर चलता है और हमें मौत बांटता है ? कोई तो बताए हमें , हम कब तक यूँ ही मरते रहेंगे.....? कब तक माँ की गोद सूनी होती रहेगी ? कब तक बहन की रोती आँखें लाशों के बीच अपने भाई को ढूंढेगी ? कब तक बच्चे माँ - बाप के दुलार से महरूम होते रहेंगे..... ? आख़िर कब तक ..............? यह सवाल मेरे ज़हन में बार - बार उठता है , खून खौलता है मेरा जब मासूमो के लहू को बहते देखता हूँ , न चाहते हुए भी आंखों को वो मंज़र देखना पड़ता है , न चाहते हुए भी कानो को वह चीख - पुकार सुनना पड़ता है । आख़िर कब तक ? आख़िर कब तक ?

धूमिल की कविता "मोचीराम "

मोचीराम की चंद पंक्तियाँ राँपी से उठी हुई आँखों ने मुझेक्षण-भर टटोला और फिर जैसे पतियाये हुये स्वर में वह हँसते हुये बोला- बाबूजी सच कहूँ-मेरी निगाह में न कोई छोटा है न कोई बड़ा है मेरे लिये, हर आदमी एक जोड़ी जूता है जो मेरे सामने मरम्मत के लिये खड़ा है। और असल बात तो यह है कि वह चाहे जो है जैसा है, जहाँ कहीं है आजकल कोई आदमी जूते की नाप से बाहर नहीं है, फिर भी मुझे ख्याल रहता है कि पेशेवर हाथों और फटे जूतों के बीच कहीं न कहीं एक आदमी है जिस पर टाँके पड़ते हैं, जो जूते से झाँकती हुई अँगुली की चोट छाती पर हथौड़े की तरह सहता है। यहाँ तरह-तरह के जूते आते हैंऔर आदमी की अलग-अलग ‘नवैयत’बतलाते हैं सबकी अपनी-अपनी शक्ल हैअपनी-अपनी शैली है मसलन एक जूता है:जूता क्या है-चकतियों की थैली है इसे एक आदमी पहनता है जिसे चेचक ने चुग लिया है उस पर उम्मीद को तरह देती हुई हँसी है जैसे ‘टेलीफ़ून ‘ के खम्भे परकोई पतंग फँसी है और खड़खड़ा रही है। ‘बाबूजी! इस पर पैसा क्यों फूँकते हो? ’मैं कहना चाहता हूँ मगर मेरी आवाज़ लड़खड़ा रही है मैं महसूस करता हूँ- भीतर सेएक आवाज़ आती ह
न्याय की उम्मीद में मर गई वो  गैंगरेप के गुहगार कौन  उसके साथ ..एक-एक कर सबने बलात्कार किया था.. उसे घंटों नहीं कई दिनों तक नर्क की जिंदगी जीनी पड़ी थी.. जब वो उन बलात्कारियों के चंगूल से से बचकर भागी तो उसे कई साल तक जिल्लत की जिंदगी जीनी पड़ी... और फिर उनलोगों ने उसे मौत के घाट उतार दिया.. जीते जी न्याय की आस में मर गई वो.. कानून के चौखट पर उसकी दलीलें काम ना आई.. उसके साथ बीता हुआ एक-एक पल उस पर हुए गुनाहों की कहानी कहती है... बताती है कि उस मासूम पर क्या बीते होंगे... लेकिन उन हैवानों का क्या.. वो तो उसके जिंदा रहने पर भी मौत काट रहे थे.. मरने के बाद भी खुले में घुम रहे हैं.. अपने ही इलाके के माननीय विधायक और उसके साथियों पर उसने गैंगरेप करने का आरोप लगाया था.. लेकिन उसकी आवाज को अनसुना कर दिया गया.. घटना के तीन साल बाद तक वो न्याय की उम्मीद में भटकती रही.. और उसके गुनहगार विधानसभा में बैठकर छेड़खानी और बलात्कार रोकने पर नए-नए कानून बनाते रहे... जनता को सुरक्षित रहने और रखने की आस जगाते रहे.. लेकिन जब कानून बनाने वाला ही उसे तोड़ने लगे तो फिर क्या होगा... 11 फरवरी को उसक