मोदी की कविता
सपनों का खंडहर
सुबह का सूरज कुछ-न-कुछ भनक लेकर आता है
परंतु आज का सूरज कुछ धुंधला
कुछ बेचैन करनेवाला
कोई चिंता पैदा करने वाला
नहीं पता, मेरे स्वंय का
कुछ लूटा जा रहा है ऐसे मिश्र भावों के साथ
सूरज मेरे आस-पास घूमता रहता है
मन और मेरे मध्य
अद्वैत का सेतु क्यों सर्जन नहीं कर पाता है
देखो कभी मैं यहां तो मन वहां
कभी मन यहां तो मैं कहीं और,
पल-दो पल में योजनों दूर
यह मन कैसी छलांग मार
चला जाता है !
(साक्षी भाव से)
नरेंद्र मोदी
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