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मोदी की कविता 

कैसे कठिन पल होते हैं ?        


भूखे-सूखे खेत हों,
धरा ताप से तपी हो,
कितने-कितनों के आशा-अरमान के अंकुर फूटते हैं।
आंखों में छोटे-छोटे स्वप्नों की लहरें
हिलोरें लेने लगती हैं।
परंतु अचानक ही पवन के एक झोंके से
ये बादल बरसे बिना ही बिखर जाएं- तब ?
अरे रे ! कैसे कठिन पल होते हैं ? 

(साक्षी भाव से)
नरेंद्र मोदी



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