बेटियों को पढ़ाने से ज्यादा बचाने पर जोर हो पढ़लिखकर वो पत्रकार बनना चाहती थी.. ताकि समाज के दबे कुचलों की आवाज़ बुलंद कर सके.. बड़ी होकर वो वकील बनना चाहती थी.. ताकि उन मुल्जिमों की आवाज़ बने.. जिन्हें अनसुना कर दिया जाता है.. जिनकी आवाज न्याय के दरवाजे तक आते-आते दम तोड़ देती है.. उस भीड़ में से कोई डॉक्टर.. तो कोई ईजीनियर तो कोई प्रशासनिक अधिकारी.. बनना चाहती थी.. उसी भीड़ में से किसी ने नेता बनने का भी ख्वाब पाल रखा था.. लेकिन ये सपने पूरे हो पाते.. उसके पहले ही टूट गए.. उन्हें ऐसी अंधे कुएं में धकेल दिया गया.. जहां से निकलना ना केवल मुश्किल था.. बल्कि नामुमकिन के करीब भी था.. एक ऐसे रास्ते पर उन्हें चलने को मजबूर कर दिया गया.. जहां बंद गलियों के अलावा कुछ ना था.. जहां आना तो आसान था.. लेकिन वहां से निकलना उतना ही मुश्किल जितना बंजर जमीन पर फसल का लहलहाना.. कभी बहलाकर.. कभी फुसलाकर.. तो कभी लालच देकर.. उन्हें वेश्यावृति के उस रास्ते पर छोड़ दिया गया.. जहां शरीर को बेचकर पेट पालना काम था.. कभी प्यार का झांसा देकर.. तो कभी शादी के नाम पर उन्हें ऐसे जगह ले आया गया.. जिसका रा