बेटियों को पढ़ाने से ज्यादा बचाने पर जोर हो
पढ़लिखकर वो पत्रकार बनना चाहती थी.. ताकि समाज के दबे कुचलों की आवाज़ बुलंद कर सके.. बड़ी होकर वो वकील बनना चाहती थी.. ताकि उन मुल्जिमों की आवाज़ बने.. जिन्हें अनसुना कर दिया जाता है.. जिनकी आवाज न्याय के दरवाजे तक आते-आते दम तोड़ देती है.. उस भीड़ में से कोई डॉक्टर.. तो कोई ईजीनियर तो कोई प्रशासनिक अधिकारी.. बनना चाहती थी..
उसी भीड़ में से किसी ने नेता बनने का भी ख्वाब पाल रखा था.. लेकिन ये सपने पूरे हो पाते.. उसके पहले ही टूट गए.. उन्हें ऐसी अंधे कुएं में धकेल दिया गया.. जहां से निकलना ना केवल मुश्किल था.. बल्कि नामुमकिन के करीब भी था.. एक ऐसे रास्ते पर उन्हें चलने को मजबूर कर दिया गया.. जहां बंद गलियों के अलावा कुछ ना था.. जहां आना तो आसान था.. लेकिन वहां से निकलना उतना ही मुश्किल जितना बंजर जमीन पर फसल का लहलहाना..
कभी बहलाकर.. कभी फुसलाकर.. तो कभी लालच देकर.. उन्हें वेश्यावृति के उस रास्ते पर छोड़ दिया गया.. जहां शरीर को बेचकर पेट पालना काम था.. कभी प्यार का झांसा देकर.. तो कभी शादी के नाम पर उन्हें ऐसे जगह ले आया गया.. जिसका रास्ता ना उन्हें पता था.. ना उनके घरवालों को..
जन्नत सी दिखने वाली जिंदगी यहां जहन्नुम से कम नहीं है.. कुछ लोग अपने अय्याशी के लिए उन्हें खरीदते हैं.. तो कुछ ऐसे भी हैं.. जिन्होंने लड़कियों को बेचने-खरीदने का धंधा कर रखा है.. इन लोगों को ना पुलिस का डर है.. ना प्रशासन का और ना ही उस मां.. बहन और ममता का.. जिनकी छांव में ये लोग पले बढ़े हैं.. चंद पैसों के लिए ये ना केवल अपना इमान बेच देते हैं.. बल्कि दूसरे के घरों के बहू-बेटियों की भी बोली लगवा देते हैं.. और कुछ बदनसीब तो ऐसे भी होते हैं.. जिन्हें अपने ही लूट ले जाते हैं.. इन्हें पहले अपनों का अत्याचार बर्दाश्त करना पड़ता है.. फिर उस बाजार का.. जहां इनके जिस्म की बोली लगाने वाले जमे होते हैं.. कभी शरीफ और खानदानी लोग तो कभी सड़क छाप.. हिस्ट्रीशीटर बदमाश भी जेब में पैसों की गर्मी के बीच इनके अस्मत का सौदा करते हैं..
सरकार बेटी बचाओ .. बेटी पढ़ाओ योजना चला रही है.. भ्रूण हत्या पर रोक लगा रखी है.. लड़कियों और महिलाओं की सुरक्षा में बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं.. लेकिन ये दावे उस वक्त कागजी नजर आते हैं.. जब लड़कियों और महिलाओं को लेकर अपराध के आंकड़े सामने आते हैं.. ये तमाम दावे उस वक्त खोखले दिखते हैं.. जब अखबार और टीवी महिलाओं पर हो री हिंसा की खबरों से पटे नजर आते हैं.. आप ये जानकर हैरान रह जाएंगे कि लापता हुए बच्चों में 70 फीसदी आबादी लड़कियों की होती है.. अंदाजा लगा सकते हैं कि इस देश में लड़कियों के कैसे हालात हैं.. गैर सरकारी संगठन क्राई (चाइल्ड राइट्स एंड यू) की ताजा रिपोर्ट से जो खुलासा हुआ है... वो ना केवल हैरान करने वाला है बल्कि बेहद गंभीर है.. ये खुलासे सरकार और प्रशासन के कामकाज के तरीके पर भी सवाल उठाते हैं..
सबसे शर्म की बात ये है किजिस राज्य में लड़कियों की सबसे ज्यादा खरीद-फरोख्त के आंकड़े दर्ज हुए हैं.. वहां की मुख्यमंत्री भी एक महिला है.. जी हां.. वही ममता बनर्जी जिन्हें जनता ने सर आंखों पर बिठाते हुए.. सत्ता का सिंहासन एक बार फिर सौंप दिया है.. जो खुद हवाई चप्पल में चलती है.. बदन पर सूती की साड़ी पहनती है.. जिसने 35 साल से सत्ता पर काबिज वाम दल के सराकर को उखाड़ फेंका... लेकिन जब इन आंकड़ो पर नजर जाती है तो सवाल उनके नेतृत्व पर उठना लाजमी बन जाता है.. ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि क्राई के आंकड़ों के मुताबिक भारत में होने वाली नाबालिग लड़कियों की खरीद-फरोख्त में 42 फीसदी पश्चिम बंगाल से खरीदी जाती हैं... क्राई की रिपोर्ट में 2014 के राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) से मिले आंकड़ों का अध्य्यन किया गया है.. रिपोर्ट के मुताबिक देश में नाबालिग लड़कियों की खरीद-फरोख्त से जुड़े करीब 75 फीसदी मामले केवल चार राज्यों से हैं.. यानी की 29 में से 4 ऐसे राज्य हैं.. जहां की तस्वीर लड़कियों के लिए भयावह है.. इन राज्यों में दूसरे नंबर पर असम का स्थान है.. जहां 15 साल से सत्ता पर काबिज तरूण गोगोई सरकार को बीजेपी ने हटाकर बाजी मारी है.. नई सरकार से नई उम्मीदें हैं.. लेकिन उन उम्मीदों में अगर इस अपराध का भी जिक्र हो ते बेहतर होता.. अगर बीजेपी की सरकार इस पर लगाम लगाने में कामयाब होगी तो केवल असम ही नहीं पूरे देश के लिए गर्व की बात होगी.. तीसरा स्थान बिहार का है.. जहां बीते 10 सालों से सुशासन बाबु का राज्य है.. नीतीश भले ही बिहार में मंगल राज होने का राग अलापें.. लेकिन जमीनी हकीकत किसी से छिपी नहीं है.. मर्डर और किडनैपिंग के लिए मशहूर बिहार में नाबालिग लड़कियों पर हो रहा ये अपराध शायद ही किसी को नजर आता है.. इस लिस्ट में चौथे नंबर पर ओडिशा का स्थान है.. यहां भी एक दशक से लंबसे समय से नवीन पटनायक सत्ता पर काबिज हैं.. लेकिन लड़कियों की खरीद-बिक्री के अपराध को कम करने में वो भी नाकामयाब रहे हैं.. सबसे बड़ी बात ये है कि साल दर साल ये आंकड़े कम होने के बजाय बढ़ते ही जा रहे हैं..
मोदी सरकार अपने दो साल के कार्य पर कामयाबी का ढिंढोरा पीट रही है.. लेकिन ये कामयाबी सच्चे अर्थों में तब होगी तब मासूमों पर अत्याचार कम होंगे.. जब अपराध के इन आंकड़ों में गिरावट दर्ज की जाएगी.. सरकार को बेटियों को पढ़ाने से ज्यादा बेटियों को बचाने पर जोर देना चाहिए.. ताकि इनकी मुस्कान बनी रहे..
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