सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

ऑपरेशन पठानकोट की इनसाइड स्टोरी


पठानकोट एयरबेस पर हुआ हमला .. मुंबई के 26/11 हमले की याद दिला रहा है.. उस वक्त भी आतंकी सरहद पार से देश में दाखिल हुए थे.. इस बार भी आतंकी सरहद पार से ही आए हैं.. उस बार भी आतंकी गोलियां बरसा रहे थे.. महत्वपूर्ण ठिकानों को निशाना बना रहे थे.. इस बार भी आतंकियों की नजर खास ठिकानों पर थी.. तभी तो पठानकोट एयरबेस को निशाना बनाया गया..

दो जनवरी की सुबह आतंकी रात के अंधेरे में एयरबेस के अंदर दाखिल होने में कामयाब हो गए.. और फिर आतंक का कभी ना भूलने वाला खूनी खेल खेला... आतंकी जितनी बड़ी मात्रा में खाने-पीने का सामान और हथियार लेकर आए थे.. उससे ये अंदाजा लगाया जा सकता है कि उनके मंसूबे कैसे थे.. सुरक्षाबलों ने जो सामान बरामद किए हैं उसके मुताबिक 15 दिन तक के लिए खाने-पीने की चीज़ें भी साथ लेकर आए थे.. साथ ही एनर्जी ड्रिंक के भी कई बोतलें मिली हैं.. इन आतंकियों के पास से पाकिस्तानी ब्रैंड के जूते और बाकि सामान भी बरामद हुए हैं..
आतंकियों ने हमले के लिए जबर्दस्त तैयारी की थी.. बहुत बड़ी तादाद में आतंकी अपने साथ गोला-बारूद और हथियार लेकर आए थे.. हर आतंकी के पास करीब 6 किलो RDX था.. जानकारी के मुताबिक ये आतंकवादी पठानकोट एयरबेस को पूरी तरह उड़ाना चाहते थे... फ्यूल स्टेशन, फाइटर प्लेन और हेलीकॉप्टर्स इनके निशाने पर थे... एयरबेस के रिहायशी इलाके में लोगों को बंधक बनाने का भी प्लान था...
एयरबेस किसी भी देश के सामरिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण जगह होती है.. पटानकोट एयरबेस पर पहले भी दुश्मन देश की नापाक नजरें रही हैं.. लेकिन ये पहला मौका है जब आतंकियों ने किसी एयरबेस को निशाना बनाया है..
पठानकोट एयरबेस पर अब सन्नाटा पसरा है.. तीन दिन तक सुनाई देने वाली गोलियों की गूंज फिलहाल शांत है... छह आतंकियों के मारे जाने की पुष्टि हो चुकी है...
81 घंटे से भी ज्यादा का समय बीत जाने के बाद ऑपरेशन खत्म होने का ऐलान  किया गया .. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि हमला कैसा होगा और आतंकी कितनी तैयारी के साथ देश में दाखिल हुए थे.. आतंकियों के पास घातक और अत्याधुनिक हथियार हैं.. जैश के आतंकी बड़ी तैयारी के साथ सरहद से पठानकोट पहुंचे और मुंबई के 26/11 से भी ज्यादा बड़े हमले के फिराक में थे..

भारतीय सीमा में दाखिल होने के बाद इन आतंकियों ने पंजाब आर्म्ड पुलिस की 75 बटालियन के असिस्टेंट कमांडेंट सलविंदर सिंह, उनके दोस्त और ज्वैलर राजेश और कुक को किडनैप किया..  बाद में आतंकियों ने इन तीनों को कई किलामीटर दूर लेजाकर सड़क पर फेंक दिया ... इंडिया टीवी पर पहली बार सामने आए एसपी सलविंदर सिंह का कहना है कि आतंकी बेहद खतरनाक हैं और घातक हथियारों से लैस थे ..
साफ है कि इस तरह की वारदात को अंजाम बिना isi के मदद के नहीं दिया जा सकता.. जैश के आतंकी मुंबई से भी ज्यादा बड़े हमले की तैयारी में भारत में दाखिल हुए थे.. यही कारण है कि उन्होंने एयरबेस पर हमले की साजिश रची..

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

धूमिल की कविता "मोचीराम "

मोचीराम की चंद पंक्तियाँ राँपी से उठी हुई आँखों ने मुझेक्षण-भर टटोला और फिर जैसे पतियाये हुये स्वर में वह हँसते हुये बोला- बाबूजी सच कहूँ-मेरी निगाह में न कोई छोटा है न कोई बड़ा है मेरे लिये, हर आदमी एक जोड़ी जूता है जो मेरे सामने मरम्मत के लिये खड़ा है। और असल बात तो यह है कि वह चाहे जो है जैसा है, जहाँ कहीं है आजकल कोई आदमी जूते की नाप से बाहर नहीं है, फिर भी मुझे ख्याल रहता है कि पेशेवर हाथों और फटे जूतों के बीच कहीं न कहीं एक आदमी है जिस पर टाँके पड़ते हैं, जो जूते से झाँकती हुई अँगुली की चोट छाती पर हथौड़े की तरह सहता है। यहाँ तरह-तरह के जूते आते हैंऔर आदमी की अलग-अलग ‘नवैयत’बतलाते हैं सबकी अपनी-अपनी शक्ल हैअपनी-अपनी शैली है मसलन एक जूता है:जूता क्या है-चकतियों की थैली है इसे एक आदमी पहनता है जिसे चेचक ने चुग लिया है उस पर उम्मीद को तरह देती हुई हँसी है जैसे ‘टेलीफ़ून ‘ के खम्भे परकोई पतंग फँसी है और खड़खड़ा रही है। ‘बाबूजी! इस पर पैसा क्यों फूँकते हो? ’मैं कहना चाहता हूँ मगर मेरी आवाज़ लड़खड़ा रही है मैं महसूस करता हूँ- भीतर सेएक आवाज़ आती ह

अब बर्दाश्त नही होता......

अब बर्दाश्त नही होता...... दिल्ली, मुंबई, बनारस, जयपुर सब देखा हमने अपनों को मरते देखा , सपनो को टूटते देखा .... अख़बारों की काली स्याही को खून से रंगते देखा ! टेलीविजन के रंगीन चित्रों को बेरंग होते देखा ! आख़िर क्यों हम बार- बार शिकार होते हैं आतंकवाद का ? यह आतंकी कौन है और क्या चाहता है ? क्यों हमारी ज़िन्दगी में ज़हर घोलता है ? क्यों वो नापाक इरादे लेकर चलता है और हमें मौत बांटता है ? कोई तो बताए हमें , हम कब तक यूँ ही मरते रहेंगे.....? कब तक माँ की गोद सूनी होती रहेगी ? कब तक बहन की रोती आँखें लाशों के बीच अपने भाई को ढूंढेगी ? कब तक बच्चे माँ - बाप के दुलार से महरूम होते रहेंगे..... ? आख़िर कब तक ..............? यह सवाल मेरे ज़हन में बार - बार उठता है , खून खौलता है मेरा जब मासूमो के लहू को बहते देखता हूँ , न चाहते हुए भी आंखों को वो मंज़र देखना पड़ता है , न चाहते हुए भी कानो को वह चीख - पुकार सुनना पड़ता है । आख़िर कब तक ? आख़िर कब तक ?
न्याय की उम्मीद में मर गई वो  गैंगरेप के गुहगार कौन  उसके साथ ..एक-एक कर सबने बलात्कार किया था.. उसे घंटों नहीं कई दिनों तक नर्क की जिंदगी जीनी पड़ी थी.. जब वो उन बलात्कारियों के चंगूल से से बचकर भागी तो उसे कई साल तक जिल्लत की जिंदगी जीनी पड़ी... और फिर उनलोगों ने उसे मौत के घाट उतार दिया.. जीते जी न्याय की आस में मर गई वो.. कानून के चौखट पर उसकी दलीलें काम ना आई.. उसके साथ बीता हुआ एक-एक पल उस पर हुए गुनाहों की कहानी कहती है... बताती है कि उस मासूम पर क्या बीते होंगे... लेकिन उन हैवानों का क्या.. वो तो उसके जिंदा रहने पर भी मौत काट रहे थे.. मरने के बाद भी खुले में घुम रहे हैं.. अपने ही इलाके के माननीय विधायक और उसके साथियों पर उसने गैंगरेप करने का आरोप लगाया था.. लेकिन उसकी आवाज को अनसुना कर दिया गया.. घटना के तीन साल बाद तक वो न्याय की उम्मीद में भटकती रही.. और उसके गुनहगार विधानसभा में बैठकर छेड़खानी और बलात्कार रोकने पर नए-नए कानून बनाते रहे... जनता को सुरक्षित रहने और रखने की आस जगाते रहे.. लेकिन जब कानून बनाने वाला ही उसे तोड़ने लगे तो फिर क्या होगा... 11 फरवरी को उसक