सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

 कैसे बचेंगे सलमान खान ?


सलमान खान पर कुल चार मामले चल रहे हैं। दो मामलों में फैसला सुनाया जा चुका है। एक मामले में सलामन को 1 साल की सजा हुई जबकि दूसरे मामले में सीजीएम कोर्ट ने 5 साल की सजा सुनाई है। सलमान खान पर पहला केस भवाद में हिरण का शिकार मामले का है।
सलमान पुलिस और न्यायिक हिरासत में 18 दिन जोधपुर जेल में बिता चुके हैं। सलमान को वन विभाग ने 12 अक्टूबर 1998 को हिरासत में लिया था। 17 अक्टूबर 1998 तक सलमान जेल में रहे। घोड़ा फार्म मामले में 10 अप्रैल 2006 को 5 साल की सजा हुई
इस मामले में सलमान 6 दिन जेल में रहे। सेशन कोर्ट ने सजा की पुष्टि की तब 26 से 31 अगस्त 2007 तक जेल में रहे।


27 सितंबर 1998 की रात जोधपुर से सटे भवाद गांव में हिरण के शिकार का आरोप है।17 फरवरी 2006 को सीजीएम कोर्ट ने 1 साल की सजा सुनाई थी । फिलहाल मामला हाईकोर्ट में लंबित है । सलमान खान पर दूसरा केस घोड़ा फार्म में हिरण के शिकार    का है । सलमान पर 28 सितंबर 1998 की रात घोड़ा फार्म के पास दो हिरणों के शिकार का आरोप है । इस मामले में 10 अप्रैल 2006 को सीजीएम कोर्ट ने 5 साल की सजा सुनाई । लेकिन राजस्थान हाईकोर्ट ने सजा पर रोक लगा दी। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दखल से इनकार किया। दोबारा सुनवाई के लिए मामला निचली अदालत में भेजा गया। सलमान खान पर तीसरा केस कांकाणी में हिरण का शिकार का है। 1-2 अक्टूबर 1998 की मध्यरात्रि में कांकाणी की सरहद पर दो काले हिरणों के शिकार का आरोप है। इस मामले में सीजीएम कोर्ट में 52 गवाहों के बयान दर्ज हैं। फिलहाल मामला लंबित है । सलमान खान पर चौथा केस अवैध हथियार मामले में है। सलमान पर लाइसेंस समाप्ति के बाद हथियार के इस्तेमाल का आरोप है।  .32 रिवाल्वर और .22 बोर रायफल से सलमान ने काले हिरम का शिकार किया था। ये दोनों हथियार 15 अक्टूबर 1998 को पुलिस ने बरामद किया। सलमान पर लाइसेंस समाप्ति के बाद भी हथियार रखने का आरोप है। मामले में 16 गवाह और सलमान के बयान दर्ज हैं। आज इस मामले में आएगा फैसला । इसके पहले

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

धूमिल की कविता "मोचीराम "

मोचीराम की चंद पंक्तियाँ राँपी से उठी हुई आँखों ने मुझेक्षण-भर टटोला और फिर जैसे पतियाये हुये स्वर में वह हँसते हुये बोला- बाबूजी सच कहूँ-मेरी निगाह में न कोई छोटा है न कोई बड़ा है मेरे लिये, हर आदमी एक जोड़ी जूता है जो मेरे सामने मरम्मत के लिये खड़ा है। और असल बात तो यह है कि वह चाहे जो है जैसा है, जहाँ कहीं है आजकल कोई आदमी जूते की नाप से बाहर नहीं है, फिर भी मुझे ख्याल रहता है कि पेशेवर हाथों और फटे जूतों के बीच कहीं न कहीं एक आदमी है जिस पर टाँके पड़ते हैं, जो जूते से झाँकती हुई अँगुली की चोट छाती पर हथौड़े की तरह सहता है। यहाँ तरह-तरह के जूते आते हैंऔर आदमी की अलग-अलग ‘नवैयत’बतलाते हैं सबकी अपनी-अपनी शक्ल हैअपनी-अपनी शैली है मसलन एक जूता है:जूता क्या है-चकतियों की थैली है इसे एक आदमी पहनता है जिसे चेचक ने चुग लिया है उस पर उम्मीद को तरह देती हुई हँसी है जैसे ‘टेलीफ़ून ‘ के खम्भे परकोई पतंग फँसी है और खड़खड़ा रही है। ‘बाबूजी! इस पर पैसा क्यों फूँकते हो? ’मैं कहना चाहता हूँ मगर मेरी आवाज़ लड़खड़ा रही है मैं महसूस करता हूँ- भीतर सेएक आवाज़ आती ह

अब बर्दाश्त नही होता......

अब बर्दाश्त नही होता...... दिल्ली, मुंबई, बनारस, जयपुर सब देखा हमने अपनों को मरते देखा , सपनो को टूटते देखा .... अख़बारों की काली स्याही को खून से रंगते देखा ! टेलीविजन के रंगीन चित्रों को बेरंग होते देखा ! आख़िर क्यों हम बार- बार शिकार होते हैं आतंकवाद का ? यह आतंकी कौन है और क्या चाहता है ? क्यों हमारी ज़िन्दगी में ज़हर घोलता है ? क्यों वो नापाक इरादे लेकर चलता है और हमें मौत बांटता है ? कोई तो बताए हमें , हम कब तक यूँ ही मरते रहेंगे.....? कब तक माँ की गोद सूनी होती रहेगी ? कब तक बहन की रोती आँखें लाशों के बीच अपने भाई को ढूंढेगी ? कब तक बच्चे माँ - बाप के दुलार से महरूम होते रहेंगे..... ? आख़िर कब तक ..............? यह सवाल मेरे ज़हन में बार - बार उठता है , खून खौलता है मेरा जब मासूमो के लहू को बहते देखता हूँ , न चाहते हुए भी आंखों को वो मंज़र देखना पड़ता है , न चाहते हुए भी कानो को वह चीख - पुकार सुनना पड़ता है । आख़िर कब तक ? आख़िर कब तक ?
न्याय की उम्मीद में मर गई वो  गैंगरेप के गुहगार कौन  उसके साथ ..एक-एक कर सबने बलात्कार किया था.. उसे घंटों नहीं कई दिनों तक नर्क की जिंदगी जीनी पड़ी थी.. जब वो उन बलात्कारियों के चंगूल से से बचकर भागी तो उसे कई साल तक जिल्लत की जिंदगी जीनी पड़ी... और फिर उनलोगों ने उसे मौत के घाट उतार दिया.. जीते जी न्याय की आस में मर गई वो.. कानून के चौखट पर उसकी दलीलें काम ना आई.. उसके साथ बीता हुआ एक-एक पल उस पर हुए गुनाहों की कहानी कहती है... बताती है कि उस मासूम पर क्या बीते होंगे... लेकिन उन हैवानों का क्या.. वो तो उसके जिंदा रहने पर भी मौत काट रहे थे.. मरने के बाद भी खुले में घुम रहे हैं.. अपने ही इलाके के माननीय विधायक और उसके साथियों पर उसने गैंगरेप करने का आरोप लगाया था.. लेकिन उसकी आवाज को अनसुना कर दिया गया.. घटना के तीन साल बाद तक वो न्याय की उम्मीद में भटकती रही.. और उसके गुनहगार विधानसभा में बैठकर छेड़खानी और बलात्कार रोकने पर नए-नए कानून बनाते रहे... जनता को सुरक्षित रहने और रखने की आस जगाते रहे.. लेकिन जब कानून बनाने वाला ही उसे तोड़ने लगे तो फिर क्या होगा... 11 फरवरी को उसक